गुरुवार, 17 मई 2007

चेतना

वर्स हो या प्रोज़ हो लिखना हमारा रोज़ हो
लेखनी को हर समय अविराम चलना चाहिए!
तलवार का हो वार या एटम का कोई वार हो
हर वार का उत्तर उन्हें हर बार मिलना चाहिए।
हाथों में तेरा हाथ हो हर क़दम तेरा साथ हो
इंसानियत को सिर्फ तेरा प्यार मिलना चाहिए।
वसुधैव एक कुटुम्बकम इस भाव को पूजेंगे हम
संसार रूपी वृक्ष को फलदार मिलना चाहिए।
ये हवा जो निर्बंध है इसमें बहुत दुर्गंध है
चलो "राघव" इस हवा का रुख़ बदलना चाहिए।

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