झर झर झरने से झरे नयन
लो कर ना सके अब दर्द वहन
ले खड़ा हुआ कई प्रश्न चिन्ह
निरुत्तर सा मेरा जहन
क्या मानवता का अर्थ यही
है ग़लत मगर क्यों वही सही
ग़र वाही सही तो, हो ना सका क्यूँ
सही भी मुझसे आज सहन
("राघव गीतांजलि")
सोमवार, 14 मई 2007
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