गुरुवार, 14 जून 2007

जिन्दगी

सभी शिकवे जमाने के दफ़न कर लेना सीने में,
जिंदगी का मज़ा क्या है अरे मर - मर के जीने में
सभी शिकवे ज़माने के दफ़न कर लेना सीने में

जिन्दगी एक तोहफा है खुदा कि लाख नियामत है,
जरा पूंछो पत्थरों से जिन्हें ये ही शिक़ायत है
मुझे क्यूँ रब ने ना दी जिन्दगी क्या थी खता मेरी,
ठोकरें क्यूँ लिखीं तकदीर में ये तो बता मेरी
ना सरदी है ना गरमी है ना पतझड़ है ना बरसातें,
ना बूंदों कि ही रिमझिम का मज़ा सावन महीने में
सभी शिकवे ..................
ज़िन्दगी है कलश अमृत इसे भरपूर पिए जा,
हवा का एक झोंका बन मज़ा इसका तू लिए जा
जिन्दगी रंग से भर ले तितलियों के संग उड़कर,
कदम आगे बढाता चल कभी मत देखना मुड़कर
कभी मत कैद होना तू किसी कि चालबाजी में,
किसी के हार कंगन में किसी मोती नगीने में

सभी शिकवे जमाने के दफ़न कर लेना सीने में,
जिंदगी का मज़ा क्या है अरे मर - मर के जीने में

1 टिप्पणी:

Alpana Verma ने कहा…

कभी मत कैद होना तू किसी कि चालबाजी में,
किसी के हार कंगन में किसी मोती नगीने में

सभी शिकवे जमाने के दफ़न कर लेना सीने में,
जिंदगी का मज़ा क्या है अरे मर - मर के जीने में
-----kitna khubsurat likha hai--
sab be achchee kavita lagee hai yeh mujhe-har ek line ka apna hee gahra arth hai---shubhkamnayen!!!!