एक गाँव के बूढ़े बाबा पूरे सत्तर साल नही थे ,
बदन में तो थी चुस्ती फुर्ती लेकिन सर पर बाल नही थे ।
एक रोज शहर दिल्ली आये करने को शैर बाजारों की ,
चाँदनी चौक में जा निकले जहाँ भीड़ थी मोटर कारों की ।
फैशन से सजी एक लडकी बाबा के पास में आयी थी,
था चुस्त पाजामा बालों कि पर्वत सी शक्ल बनायीं थी ।
आकर बोली वो बाबा से बाबाजी मुझको बतलाना,
मैं भूल गयी यहाँ आ निकली था पहाड़ गंज मुझको जाना ।
सुनकर के बातें लडकी कि बाबा थोडा सा मुस्काया,
है पहाड़ गंज जहाँ खडी हुई बाबा ने उसको बतलाया ।
बोली लडकी बाबा ये तो शीश गंज गुरुद्वारा है,
बाज़ार चाँदनी चौक का है, यहाँ आता नज़र फुआरा है ।
बोला बाबा थोडा हंसकर तुम कहीँ नही खाना चक्कर,
है पहाड़ बाना तेरे सर पर और गंज देख मेरे सर पर ।
" राघव गीतांजलि से "
सोमवार, 11 जून 2007
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें